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Tuesday 28 June 2016

मेरी रचनाएँ सौरभ दर्शन में, 
२१.पति और बेटा
पिस रहा आज मानव दो जिंदगियों के बीच में ,
भूल गया अस्तित्व अपना ,फर्ज के गहरे फेर में !
एक तरफ है धर्म का नाता ,दूसरी ओर जन्मों का मेल !!
गर सुनता माँ बाप की ,तो पत्नी देती आँख तरेर ,
गर याद करता अपने फर्ज को ,
आँखों से बहता आंसुओं का ढेर !
समझौता कराने की जुगाड़ में ,दिन रात चल रहा मतभेद !
\क्यूँ नहीं समझता कोई ,बेचारी चक्की का दुख् भेद !!
दो पीढ़ियों की सोच में पति बन गया मदारी ,
न समझते दुःख माँ बाप उसका ,न समझने को आतुर उसकी नारी !!
गर सुनता पत्नी की ,दुनिया कहती जोरू का गुलाम ,
गर निभाता जन्मदाता का फर्ज ,दुनिया कहती डूब जा निर्लज्ज !!
समझना जरूरी है आज इंसान को इंसान का ही दर्द ,
नजर आयेगा नहीं तो दुनिया में जल्द ही ज़िंदा लाशों का संघर्ष !!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 जुलाई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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