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Saturday 25 June 2016

                                                    १२.दुल्हन सी जिंदगी 

दुल्हन सी जैसी जिंदगी ,देखो आज फिर मायके चली ,
भेजी थी दुनिया में जिस बाबुल ने ,उसी को थी कल भूल गयी !
रही थी नौ महीने गर्भ में ,दुःख दर्द सहती रही ,
कहती थी भगवान् से लगा दो पार मेरी नैया ,दुनिया से मैं ऊब चली !
सहकर सारे दुःख दर्द ,जब रौरक नरक को झेल चुकी ,
आते ही फिर गर्भ से बाहर,दुनिया में दर्द अपने भूल गयी !
कुछ याद था पिछले जन्म का ,कुछ दिन संताप में रही ,
आकर उस माँ की गोद में ,धीरे धीरे सब भूलने लगी !
जब फूटा पहला शब्द तो वो ,सिर्फ माँ का ही एक नाम था ,
प्यार में बहकर इस दुनिया को ही स्वर्ग वो समझने लगी !
बचपन बीता आई जवानी ,सखियों के संग झूमने लगी ,
देखकर जीवन के रंग ,झूठे स्वप्न में ही खोने लगी !
न याद रही मंजिल अपनी ,दुनिया उसको ठगने लगी ,
न समझ पाई दुनिया की चाल ,दुनिया में यूँ रमने लगी !
वक्त यूँ ढलने लगा, जवानी भी साथ छोड़ने लगी ,
आया जब बुढ़ापा तो, लाठी की याद सताने लगी !
तन ने भी छोड़ दिया साथ ,मन भी दुखी रहने लगा ,
जब दूर हो गए सारे अपने ,तो बाबुल की याद आने लगी !
सोचा दो पल और मिल जाएँ ,जीवन अपना सुधार लूँ ,
भूल गई थी जिस बाबुल को, उससे अब माफ़ी मांग लूँ !
जीवन दिया ,जिंदगी मिली ,सोचने की समझ भी दी आपने ,
मुझसे घोर पाप हुआ ,जो आपको ही बिसराने लगी !
मिला था मुझको मानुष तन ,सँवारने को दुखियों का जीवन ,
ये कैसी मुझसे भूल हुई ,संवारना तो दूर रहा खुद का भी मैं बिगाड़ चली !
हाथ जोड़कर अंत में, विदा अब लेने लगी ,
दुल्हन सी जैसी जिंदगी ,देखो आज फिर मायके चली ,
लुटा कर अपना सब कुछ दुनिया में, आज बाबुल की सीख छोड़ चली !!

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