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Sunday 3 July 2016

                                        ३७.कविता की चोरी 

गुजार दी एक कवि ने अपनी जिंदगी दूसरों की ख़ुशी के लिए ,
लोग लिख लेते हैं अपना नाम उसके आगे वाह वाही पाने के लिए !


जरा मेहनत तो करके देखो नाम कमाने के लिए,
संतोष मिलेगा खुद की कमाई हुई दो सूखी रोटी के लिए ।


अजीब चलन है जमाने में झूठी शान का ,
लोग भूल जाते हैं अपनी अहमियत फरेबी आन के लिए ।


क्यों हार गए हो खुद से ही तुम इतने ,
क्यों नहीं रहा यकीन खुद पर अपनी जीत के लिए ।


अभी भी वक़्त है संभल जाओ ,
पहचान लो खुद को तुम नहीं बने हो खुद के मजाक के लिए ।

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