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Monday 19 September 2016

                                            ९१.व्यंग्य 

{व्यंग्य}
मेरा देश महान ,जय हिंद
मरता है जब सैनिक कोई ,कविता एक नयी बन जाती है ,
क्या उसके उजड़े हुए चमन से आँख किसी की भर आती है ?
लेकर उन शहीदों का नाम ,अपनी खाली झोली भरते हैं ,
क्या कभी किसी ने सोचा है उस माँ के बारे में ,
जिस की आँखें खून के आँसूं रोती है ।
सबको याद रहती है सिर्फ अपना नाम कमाने की ,
चाहे वो दुर्घटना हो या माँ की झोली उजड़ी थी ।
वाह वाह मेरे देश की मिट्टी कैसे कैसे सपूत बनाती है ।
वो बैठे हैं सीना ताने ,बनकर देश के हुक्मरानों की तरह ,
क्या सपूतों की शहादत उनको नजर नहीं आती है ।
वोट बैंक बनकर रह गयी है सिर्फ आज की सरकारें ,
मिलकर देश में रोज रोज नयी रणनीति बनाती हैं ।।
मख़ौल उड़ाते हैं सब एक दूसरे के धर्मों का ,
पर सच्चाई किसी को कभी भी क्यों नजर नहीं आती है ।।
बड़े बड़े भाषण देना ,क्या सिर्फ यही राजनीती सिखाती है ?
अरे ज़रा रुककर तो देखो उन माँ बहनों को ,
जिनके सपूतों की कुर्बानी ................. उन्हीं को,
जिंदगी भर के लिए आँखों में आँसूं और लाचारी दे जाती हैं ।
( देश के शहीदों को नम आँखों से मेरी अश्रुपूरित श्रधांजलि )
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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