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Saturday 3 September 2016

                                ८३.जीवन और कान्हा 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,एक और कविता सौरभ दर्शन में |

जीवन और कान्हा


जाना है बहुत दूर पथ में ,
रे मन तू हिम्मत न हारना !
पथ में मिलेंगे कांटे हजार ,
जीवन को समझकर काँटों का हार
रे मन तू खुद से न हारना !
जीवन है नैया ,हिम्मत है पतवार ,
छोड़ दे नाव को मांझी के हाथ जीवन गुजारना !
कोई न दे गर साथ जिंदगी में तेरा
हाथ पकड़कर “सांवरे” का खुद को तू ढालना !
गर दिया है जीवन “कान्हा” ने
साँसों की डोर भी ,कस कर तू थामना !
जीवन है मधुर गीत तो है काँटों की शैया भी,
देखकर राह में मुश्किलों को,
रे मन तू कभी न घबराना !!

1 comment:

  1. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन, बहुत ही अच्छा लिखा आपने
    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

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