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Sunday 2 October 2016

                                 ९५.जिंदगी की हकीक़त 

आज  के हालात पर मेरी रचना" जग प्रेरणा"रायपुर में ,


जिंदगी की हकीकत को इस तरह भुलाया न करो ,
झूठ को सच मानकर यूँ मजाक उड़ाया न करो।
खेल है ताश के पत्तों जैसा ये दुनिया ,
कभी किसी को बेगम ,तो किसी को बादशाह बनाया न करो ।
तारीफ़ में क्यों करते हो किसी की कंजूसी ,
मखमल में टाट के पैबंद तो न लगाया करो ।
सुराही दार गर्दन के पीछे कब तक भागोगे ,
कभी तो घड़े के पानी को भी मुँह लगाया करो।
ख़बरों के मौहल्ले बहुत हो गए हैं आजकल ,
अजी कभी तो सच्चाई को भी नजरों में भर लिया करो ।
दूसरों की क्यों धज्जियाँ उड़ाते हो भरी महफ़िलों में ,
कभी तो अपने गिरेबान में भी झाँक लिया करो। 
गुम हो जाते हैं कुछ शब्द मजलूमों की तरह ,
कभी तो वर्षा की बूंदों से भी सीख लिया करो। 
बना लेता है अपने लिए जगह वो भरी दुनिया में ,
कभी तो सूरज की तरह रौशनी फैलाया करो ।

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