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Friday 18 November 2016

                                         ११३.प्यार 


आज का कटु सत्य :
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
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फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।

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