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Wednesday 28 December 2016

                                       १३२.शब्द 


जय श्री कृष्णा मित्रो,
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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