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Thursday 23 March 2017

                                               ४१.रे दिल 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,आप सभी का दिन शुभ हो । (18/4/17)के दैनिक हमारा मेट्रो में मेरी रचना ,


रे दिल के खालीपन को तुम कैसे भर पाओगे !
जब वफ़ा का मतलब भी सिर्फ भोग से लगाओगे !!
प्यार नहीं होता कभी भी जिस्म का मोहताज !
इश्क़ है खुदा की सच्ची इबादत तुम कैसे समझ पाओगे !!
पूजा था जिस दिल को एक पत्थर ने खुदा की तरह !
क्या उसकी इबादत का मोल भी लगा पाओगे !!
प्यार करना लगता है आज भी जिनको एक खेल ताश का !
उस ताश के महल पर घर कैसे बना पाओगे !!
लैला मजनूँ की कहानियां पढ़ने में लगती हैं बहुत ही आसान !
मोहब्बत को निभाना एक सजदे की तरह कैसे सीख पाओगे !!
प्यार करना और निभाना दोनों जज्बात हैं अलग !
मिल्कियत प्यार की कैसे ,तुम सहेज पाओगे !!
दिल की तड़फ कहती है आज भी
वफ़ा की कहानी !
सब्र है सीने में दफन कितना, कैसे यकीं कर पाओगे !!
जानशीं हो तुम ,जान भी तुम्हीं से जिंदा रहती है !
ओ प्यार के खुदा कब मोहब्बत को कबूल कर पाओगे !!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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