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Sunday 4 June 2017

                                      ९१. ओम एक्सप्रेस

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी दो कविताएं ओम एक्सप्रेस मासिक पत्रिका जयपुर में ,आभार
1,जाने क्यों लगते सारे रिश्ते बेमानी है ।
जिंदगी रहनी है तन्हा- तन्हा ,
सिर्फ ख्वाबों में जिंदगी बितानी है ।
जिसको भी चाहा हद से ज्यादा ,
उससे ही ठोकर खानी है ।।
रिश्तों के झंझाबात में मिलती
सिर्फ एक वीरानी है ।
तप है जीवन आरती घर की गाथा है ,
मुश्किलों के दौर से खुद के लिए
सिर्फ एक ख़ुशी चुरानी है,
बस और बस एक ख़ुशी चुरानी है ।

2,सपनों के सौ दिन ,

सुना था कभी बचपन में सपनों के भी सौ दिन होते हैं ।
टूट जाते हैं अनगिनत सपने ,फिर भी आशाओं के पंख होते हैं ।
आँखों के धुंधले साये में पंकज के भी चंन्द निशान होते हैं !
सुलगते हैं अरमान दिलों में दिल फिर भी राजदा होते हैं !
 

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