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Thursday 1 June 2017

                                                  ८९.यादें 

यादों को बनाकर चिराग कैसे अंधेरों से जीत सकते हैं !
कंधे पर रखकर औरों के बन्दूक कैसे दौड़ सकते हैं !
जलानी होगी हिम्मत कि मशाल गर अकेले चलना है ,
उदासी को भुलाकर ही मंजिल को हासिल कर सकते है

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