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Friday 6 October 2017

                                     १५०,गजल 

नीर भरी इन आँखों मे कैसे कोई समायेगा ,
टूट गया जब सपना कोई कैसे सच हो पायेगा ।

यादों के गहरे समंदर में अक्सर गोते खाते हैं ,
मुक्त हुई धारा के लिए कौन बांध बनाएगा ।

प्यार की बहती अविरल धारा को कौन रोक पाया है ,
न ही कश्ती न ही खिवैया कौन पार ले जाएगा ।

जीवन है एक सागर जैसा किनारा नजर नहीं आता है ,
ढूंढ रही हैं आंखें उसको जो पार ले जाएगा ।

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