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Monday 18 December 2017

                                  १९२,पुकार 




सुनो क्यूँ करते हो तुम ऐसा जब भी कुछ कहना चाहती हूँ दिल से ,
समझते ही नहीं मुझे ,जानते हो न मुझे आदत है यूँ ही आँसू बहाने की !
क्यूँ करते हो तुम ऐसा ,क्यूँ नहीं समझते मेरे जज्बात ,मेरी दिल्लगी ,
कल जब हम न होंगे तो , किसको सुनाओगे कहानी अपने दिल की !
आज वक़्त है तुम्हारा तो जलजले दिखाते हो ,कहती हूँ फिर दिल से ,
दूर नहीं वो दिन बगाबत पर उतर आएगी ,जब ये मेरे दिल की लगी !
क्यूँ अच्छा लगता है तुम्हें मेरा हर पल आंसुओं में डूबा हुआ चेहरा ,
क्यूँ नहीं आई होठों पर कभी हंसी और मुस्कराहट सुहानी सी !
चलो देखते हैं कब दौर खत्म होगा मेरी जिंदगानी के पल पल ढलते ,
                    //खून और जलती हुई चिंगारियों का //
सहनशीलता की पराकाष्ठा बहुत है , शायद टूटना मुश्किल है मेरा ,
यही तो जिंदगी है और यही जिंदगी की समरसता है आज भी ,
चलो छोड़ो रहने दो तुम नहीं समझोगे कभी मुझे अपना दिल से !!

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