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Tuesday 17 July 2018

108.Han me aurat hun 

https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/versha-varshney-hanmain-aurat-hun

मैं हूँ कामिनी ,मैं हूँ दामिनी
हैं चंचल कटाक्ष नेत्र भी 
साहस की मैं हूँ स्वामिनी 

मैं हूँ रागिनी ,मैं हूँ यामिनी
है मुझमें सरगम भरी हुई
त्याग और धैर्य की हूँ प्रतिभागिनी 

मैं हूँ दुर्गा ,मैं हूँ काली
तेज है मुझमें समाया हुआ 
वीरता की हूँ सौदामिनी 

मैं हूँ माँ ,मैं हूँ अनुगामिनी
प्यार की करती हूं बरसातें
हूँ बेटी जैसी बड़भागिनी 

मैं हूँ धरिणी ,मैं हूँ जननी
मारकर मुझे कैसे खुश रह पाओगे
मैं ही तो हूँ जन्मदायिनी 

मैं हूँ मिश्री ,मैं हूँ तीखी
मत छेड़ना रौद्र रूप को 
आ जाऊँ जिद पर तो हूँ गजगामिनी 

मैं हूँ शील ,मैं हूँ वेद वाणी भी
सीखते हो चलना ऊँगली पकड़कर
मैं ही हूँ वो जीवन दायिनी 

माना कि बीज तुम्हारा है 
खून देकर लेकिन मैंने संभाला है 
कोसते हो फिर क्यों आज भी 
संसार है मुझसे ,मैं ही तो हूँ
ईश्वर की जीती जागती कामायनी 

- वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़



Han.main aurat hun

मेरे अल्फाज़

मैं औरत हूँ...

                                               107,kavita 


जयविजय के जुलाई अंक में प्रकाशित ,


                                       106.kavita 

दिल के अंजुमन से,
दिल के घरोंदों तक !
कस्तूरी की महक है !!
जन्नतों का नाम इश्क़ है ,
या महबूब की चाहत है !

                                  105,jeevan 

Meri kavita Amar ujala kavy par 
https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/versha-varshney-jeevan

थककर बेरहम जमाने से आंसुओं को पीना सीख लिया 
अक्सर लोगों से सुना उसने जीना सीख लिया।

अल्फाजों को ढालकर गम के गहरे समंदर में
हमने जबसे दर्द का दामन सीना सीख लिया ।

बन जाता है मरहम दर्द का गहरा सागर भी
लड़कर तूफानों से हमने चलना सीख लिया ।

जज्बातों की कद्र करेगा क्या कोई इस दुनिया में 
कांटों पर चलकर मंजिल को पाना सीख लिया।

नदिया की धारा जैसी हैं विपरीत दिशाएं जीवन की 
कश्ती हैं हिम्मत की, चट्टानों से लड़ना सीख लिया ।

आत्म विश्वास ही जीवन ,ईश्वर को सखा मान लिया 
नववर्ष की शुभ बेला में आशा का दामन थाम लिया ।









Jeevan

मेरे अल्फाज़

जीवन...

Thursday 12 July 2018

                           104,Haal  Ai Dil 

तुम बताते रहे अपना हाल ऐ दिल ,
हम सोचते ही रह गए
बांटने को दिल की हर मुश्किल ।

                                    103,duniya 

जब आप आगे बढ़ते हैं तो 
दुनिया पीछे खींचने की कोशिश
करती है । यही दुनिया का दस्तूर है ।
तो रुकना क्यों ,चलते रहो अनवरत ।

हद की भी एक हद होती है ,
टूट जाते हैं वो दिल भी 
जहां प्यार की हद बेहद होती है ।

                                     102 Kavita 



 मेरी रचना वेब पत्रिका सहित्यसुधा के जुलाई अंक

 में,


.

Wednesday 4 July 2018

                                           101,बचपन

Meri kavita amar ujala kavy par 4/7/18 
https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/versha-varshney-bachpan

वो कागज की नाव ,
वो बारिश में खेलना।
आता है क्यों याद ,
वो बड़ों का डांटना।।

न बीमारी का डर,
न रुसबाई का कहर।
आता है क्यों याद,
वो बस्ते का भीगना।।

इन्जार के वो पल,
कब जाएंगे स्कूल।
आता है क्यों याद,
वो टीचर से भागना।।

आठ जुलाई आते ही,
मानसून जब आता था।
आता है क्यों याद,
वो बचपन का याराना।

जिद करके जाना बाहर,
गजब था वो सुहाना सफर।।
आता है क्यों याद,
वो चुन्नी का लहराना।।

न रहा प्यारा बचपन,
हो गई उम्र पचपन।
आता है क्यों याद आज भी,
वो बचपन में मचल जाना।।

कितना मासूम कितना निश्छल ,
होता है बचपन सारा ।
आता है क्यों याद ,
वो वक़्त को न रोक पाना ।

चलो भूलकर स्वप्न को,
वर्तमान में आ जाएं।
क्यों न फिर से सीख लें
वो बच्चों जैसा मुस्कराना।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                          100,tanhai ka paigaam 

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।मेरी कविता पाक्षिक पेपर सौरभ दर्शन *(राजस्थान )में ,

                              99.दर्द की इंतहा


https://hindi.sahityapedia.com/?p=97999
शर्मनाक डूब मरो ,
अपनी बहन पर्दों में ,दूसरे की बहन काँटों में ????
https://www.linkedin.com/pulse/dard-ki-inthaa-mandsor-ghatna-par-meri-kavita-versha-varshney/
(यहां न बात धर्म की है ,न किसी विशेष जाति की ।
यहां तो बात है सिर्फ मासूम बच्चियों की इज्जत की ।
क्यों लाते हो बीच में मजहब और राजनीति को,
है हिम्मत तो दे दो “सबूत “अपने मर्द होने की)
कंठ है अवरुद्ध होठों पर भी लगे हैं ताले,
भुलाकर ईमान सिल गए हैं लवों के प्याले।।
हार रही है मानवता घुट रही है इंसानियत ,
हर पल क्यों दुर्योधन बन रहे युवा हमारे ।।
चीर हरण अस्मिता का एक खेल बन गया ,
अनगिनत बन गए हैं यहां धृतराष्ट्र बेचारे ।।
जोर आजमाइश का अब द्रौपदी पर नहीं ,
मासूमों पर बरस रहे हैं आज दहकते अंगारे।।
घोर कलयुग पनप रहा व्यभिचार के कूप में ,
तन के पुजारी बन रहे हैं आज बुद्धि के मारे ।।
देवियों के देश में हर पल अपमान होता है ,
यहां सिर्फ नवदुर्गा में कन्या पूजन होता है ।।
खोकर मूल्य अपनी संस्कृति के मानव रक्त रंजित हुआ 


लगता है पाषाण युग में जी रहे हैं हम बेचारे।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                           98,vichaar 

जय श्री कृष्णा मित्रो,

विचारों की सुंदरता या बदसूरती ही 
आपको सुंदर या बदसूरत बनाती है ।

काव्य और सौंदर्य दोनों
 एक दूसरे के पूरक हैं ,
जो पढ़ने में मन को छू जाए
 वही काव्य का सौंदर्य है !!

                                    97,makadjaal 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,जोधपुर से प्रकाशित 26/6/18 के नव ज्योति .....नव एक्सप्रेस में मेरी रचना


                                       96,prabhat 


Monday 25 June 2018

                             95,sansmaran 

संस्मरण ::####::
कुछ भूली बातें अक्सर याद आ ही जाती हैं या कहिए कुछ बातों को भूलना हमारे बस में नहीं होता ।जिंदगी एक संघर्ष ही तो है जो बिना रुके ,अनवरत चलता ही रहता है ।कुछ विचित्र हादसे हमारी जिंदगी को एक नया आयाम देते हैं और हम उन्हीं में उलझकर रह जाते हैं ।हमारी आत्मा की आवाज हम अनसुनी करके कुछ ऐसा कर जाते हैं जो 
असहज होता है।हां #कल ही की तो बात है जब जिंदगी सहज लगने लगी थी ।कभी सोचा भी नहीं था कि फिर से नए रास्ते उन्हीं पुरानी पगडंडियों की ओर ले जाएंगे । कोई कितना भी @ साधक हो ,विचलित हो ही जाता है । ☺️तुमने कभी उन रास्तों को दिल से अपना माना ही नहीं जो मंजिलों की ओर ले जाते हैं ।%#मैं चलती रही उस अनजानी दौड़ में जिसका मैं कभी हिस्सा थी ही नहीं ।अनबूझे रास्ते ,अनजानी मंजिलें जो चुनी थी मैंने खुद को सुकून देने के लिए ,नहीं जानती थी वो मंजिलें मेरी कभी थी ही नहीं । मैं हमेशा से सोचती थी कि जब असहनीय दर्द अकेलापन आपको रुलाता है तब उन अंधेरे रास्तों में किसी अपने का साथ हमें संबल देता है । ☺️कितनी अनजान थी मैं इस दुनिया के अजीब तौर तरीकों से ?अचानक सब कुछ कैसे बदल जाता है । एक अव्यक्त अवधारणा ने मेरे पुराने उसूल पर जैसे वज्राघात कर दिया और मैं सिवाय तिलमिलाने के कुछ भी नहीं कर पाई ।##एक अवसाद ,इस उम्र को और भो बोझिल कर गया ।क्या सोचने लगे ?????न न ,कुछ और समझने की ताकत जैसे खत्म हो गयी । पेड़ों की छाया में हम सिर्फ थोड़ी देर ही बैठ सकते हैं आजीवन तो नहीं न %?हमारे बड़े हमारा मार्गदर्शन ही कर सकते हैं बाकी हम किस रास्ते जाते हैं ये हमारी फितरत ही हमको ले जाती है । बचपन में मिले हुए संस्कार ,अनुभव आखिर कैसे बदल जाते हैं ।जिस दर्द से मैं गुजरी हूँ ईश्वर वो दर्द कभी किसी दुश्मन को भी न दे ।##माता पिता का प्यार हमें सुधार देता है और उनसे दूरी हमें कभी कभी अंधेरों की ओर ले जाती है ,लेकिन जब तक बहुत देर हो जाती है ।सपनों का संसार आज भी लड़कियों के लिए सिर्फ एक सपना ही तो है ,जहां वो एक सुंदर राजकुमार की कल्पना करके खुशी से झूमने लगती है ।क्या जीवन ऐसा होता है ,नहीं ? सच्चाई के धरातल पर जब वो उतरती है तब तक उसके सारे सपने बिखर चुके होते हैं ।
सिर्फ भटकन ,बिखराव ,आंसू के अलावा उसकी झोली खाली ही होती है ।यकीन नहीं होता ,लड़कियों को इतना पराधीन भी किसने बनाया ?हमारे समाज ने या समाज की रूढ़िवादिता ने ।अतिशय प्यार और अतिशय रोक टोक से कब किसका भला हुआ है ।### दूरियां सिर्फ दूरियां ही पैदा करती हैं । किसी को अपना बनाना और किसी के लिए समर्पित होना ही पूर्णता है वरना जिंदगी सिवाय एक रंगमंच के कुछ भी तो नहीं ।हम और आप जैसे न जाने कितने कलाकार आये और विदा हो गए । चाहे देश हो या प्रेमी प्रेमिका : बेटी बेटा हो या पति पत्नी पूर्ण समर्पण ही जिंदगी है बाकी सब एक दिखावा सिर्फ एक छलावा,एक सुंदर नाटक सिर्फ ................
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                  94,yu rulaate hain vayde 

मेरी रचना राजस्थान के सौरभ दर्शन में प्रकाशित ,

Thursday 21 June 2018

                                              93,geet 

सुप्रभात मित्रो आपका दिन शुभ हो ,जय श्री कृष्णा ।मेरी कविता अलीगढ़ की मासिक पत्रिका "ज्ञान गंगा" के जून अंक में ।

                                   92,sher 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,कनाडा की अंतरराष्ट्रीय ई मासिक पत्रिका "प्रयास "के जून अंक में मेरी पंक्तियां ।

                       91,aagaman 4th gosthi 







जय माँ शारदे ,
माँ शारदे की असीम कृपा से "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " अलीगढ़ की चतुर्थ काव्य-संगोष्ठी कल दि0 14-06-2018 को श्री खुशीराम महाविद्यालय खैर (जनपद अलीगढ़) के सभागार में सुकवि श्री भुवनेश चौहान "चिंतन" के संयोजन में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुयी । माँ सरस्वती के समक्ष दीप-प्रज्ज्वलन कार्यक्रम के अध्यक्ष (महाविद्यालय के स्वामी/प्रबंधक )श्री खुशीराम भारद्वाज ने तथा माल्यार्पण आगमन के संरक्षक नरेन्द्र शर्मा "नरेन्द्र" एवं अध्यक्ष डॉ.दिनेश कुमार शर्मा ने किया । सफल सञ्चालन सुकवि श्री अजय जादौन "अर्पण" ने किया। कविगण सर्वश्री तेजवीर सिंह त्यागी , श्रीओम वार्ष्णेय , सुभाष सिंह तोमर , डॉ. दौलतराम शर्मा , सुधांशु गोस्वामी , राधेश्याम शर्मा , मनोज नागर , आपकी मित्र श्रीमती वर्षा वार्ष्णेय (सचिव,आगमन), श्रीमती पूनम शर्मा "पूर्णिमा", डॉ. दौलतराम शर्मा , श्री रामेन्द्र ब्रजवासी आदि ने अपने श्रेष्ठ सरस काव्यपाठ से श्रोताओं को रस-सिक्त किया । कॉलेज प्राचार्य श्री नरेन्द्र भारद्वाज ने सभी कवियों को सम्मानित किया । श्रोताओं में बी एड एवं बी टी सी प्रशिक्षुओं की उपस्थिति विशेष रही जिन्होंने काव्य-रसास्वादन करते हुए आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।

                                            90,sher 

तपती दोपहर की एक बूंद हो तुम ,
जलते हुए जीवन का एक रूप हो तुम
लटकी थी सलीब पर जिंदगी मेरी ,
उस सलीब का एक रकीब हो तुम ।

                                        89,sukun 

जीवन का सुकून सिर्फ व्यस्तता ,
वरना ध्रुव सत्य सिर्फ अस्तता ।

                                       88,prem 

जय श्री कृष्णा मित्रो,
बहती नदिया सा कारवां मेरा ,
कोई न साथ सिर्फ आसमां मेरा ।
लहरों जैसी अठखेलियाँ जीवन मेरा ,
प्यार हूँ सिर्फ प्यार ही मकसद मेरा ।

                                      87,jayvijay 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,आपका दिन शुभ हो ।लखनऊ से प्रकाशित जय विजय पत्रिका के जून अंक में ,

                                        86,june 


                                   85,sher 

रहगुजर तेरी आँखों की हमसे संभाली न गयी 
जिंदगी सिर्फ इंतजार थी हक़ीक़त मानी न गयी 
माना कि फासले बहुत थे तेरे मेरे दरमियाँ 
तुझे पाने की हसरत दिल से निकाली न गई 

                                         84,dil 


                                         83,ummeden 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,आपका दिन शुभ हो ।मेरी रचना जोधपुर से प्रकाशित नव ज्योति .... नव एक्सप्रेस में 

                                     82,hasraten 

जय श्री कृष्णा भीलवाड़ा से प्रकाशित पाक्षिक सौरभ दर्शन में मेरी रचना "ऐ हसरतें "


                                         81,dil se 

कुछ बातें दिल से , 
कभी कभी सोचती हूँ ये दुनिया कितनी स्वार्थी है ,काश में भी इस दुनिया जैसी बन पाती । जो लोग कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं अगले ही पल वो इसी दुनिया के परिंदे नजर आते हैं जिन्हें सिर्फ अपनी खुदगर्जी के सिवाय कुछ और नजर नहीं आता।
मेरा कोई गॉड फादर नहीं ।ईश्वर की असीम कृपा रही आज तक कि किसी के आगे सर झुकाने की जरूरत नहीं पड़ी । आज तक जो भी मिला उस परमपिता की कृपा से ही मिला और आगे भी जो मिलेगा उसी की कृपा होगी ।मैं खुश हूं , हां भावुकता मुझे विरासत में मिली है लेकिन ये मेरी कमजोरी नहीं मेरी हिम्मत है । हे परमपिता अपनी कृपा बनाये रखना ।जीवन में सिर्फ आपके सिवा किसी और के सामने सर झुकाने की नौबत मत आने देना ।

                  तब्बसुम के धागों से इश्क़ को बुना ,
                    तो सूरत ऐ यार *****नजर आई !
                   तन्हाई का आलम बड़ा संगीन था ,
                  इश्क़ के नसीब में होती है जुदाई !

                                           80,Maa 

कहते हैं सीधे पेड़ जल्दी ही काट दिए जाते हैं ।क्या सीधा होना गुनाह है या त्रासदी ? पढ़लिखकर जिस ऊंचाई को आपने छुआ था उस जमाने में लोगों के लिए मात्र एक सपना था ।एक पवित्र आत्मा जो इस जमाने के लिए अजूबा थी ।दया ,उदारता ,बड़ो को सम्मान देना ,समाज सेवा कितने सारे गुण समेटे हुए थी ।मेरी हर इच्छा को पूरी करना जैसे आपके लिए जुनून था । क्यों लेकिन क्यों नहीं सोचा एक बार भी आपके बाद मेरा क्या होगा ?इतनी कम उम्र में क्यों तमन्नाओं से मुख मोड़ लिया ।अनुउत्तरीत हैं आज भी सारे सवाल ।माँ अगले जन्म में फिर से मिलेंगे उन्हीं सारे सवालों के जवाब के लिए । मिलोगी न माँ ? तुमने कहा था मम्मी एक बार, "मैं चली जाऊंगी भगवान के पास लेकिन तुझे तेरी सारी चीजें भेज दिया करूंगी ।" बाल सुलभ मन कितना अनजान होता है ,और मैं सहज तैयार हो गई थी । जब भी कभी रेडियो पर गाना सुनती थी तो लगता था तुम गा रही हो । मामा कहते थे मम्मी आसमान से गीत गा रही है और मैं सच मान लेती थी । माँ तुम कहती थीं मैं तुझे बहुत बड़ा इंसान बनाऊँगी।कोशिश कर रही हूं माँ शायद तुम्हारी अधूरी इच्छाओं को पूर्ण कर सकूँ ।आज इस उम्र पर आकर फिर से कहती हूँ माँ लौट आओ सिर्फ एक क्षण के लिए ही सही मुझे कुछ नहीं चाहिए सिर्फ तुम्हारी गोद के सिवा ।काश ऐसा होता .......
तुम्हारी बेटी तुम्हारे इंतजार में 

                                   79,Maa 

माँ प्यारी माँ ******
जिंदगी की सबसे बड़ी कमी माँ *
स्वयं कष्ट सहकर भी जो 
बच्चों को प्यार दे वो है माँ*
इंसान की तो बात ही क्या 
ईश्वर की भी जरूरत है माँ*
माँ* प्यार का मजबूत धागा 
टूटकर भी जो न टूट पाता
माँ *जीवन का सच्चा नाता ,
मृत्युपर्यन्त भी साथ निभाता।
तुम हो तो संसार भी साथ देता
बिन तेरे जीना भी दुष्कर है माँ *

                                 78.Jay vijay 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,लखनऊ से प्रकाशित जयविजय के मई अंक में मेरी रचना ,



Thursday 10 May 2018

                                          ७६,भाग्य 

हमारा भाग्य हमसे दो कदम आगे चलता है । सही मायने में ईश्वर हमें हर पल आगाह करते हैं कि किसी भी मोड़ पर हिम्मत मत हारो ।सच्चे मन से मेहनत करते रहो ।हो सकता है भविष्य में ईश्वर ने आपके लिए कुछ और बहुत अच्छा सोच रखा हो ।

                        ७५,आगमन गोष्ठी ६ /५ /१८ 










जय माँ शारदे ,माँ शारदे की असीम अनुकम्पा से कल 6/5/18 को हिन्दू इण्टर कॉलेज, अलीगढ़ में "आगमन" साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह, अलीगढ़ की द्विमासिक कवि गोष्ठी डॉ. अशोक 'अंजुम' की अध्यक्षता में आयोजित की गयी । जिसका सफल संचालन डॉ. दिनेश कुमार शर्मा तथा अलीगढ़ नगर के प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार नरेंद्र शर्मा 'नरेंद्र' ने किया । कवि गोष्ठी का श्रीगणेश गोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. अशोक 'अंजुम' ने माँ सरस्वती एवं भारत माता के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया । सरस्वती वंदना खैर से पधारे भुवनेश चौहान 'चिंतन' ने प्रस्तुत की । मंचस्थ अतिथियों का स्वागत आगमन के पदाधिकारियों डॉ. दिनेश कुमार शर्मा, वर्षा वार्ष्णेय, पूनम शर्मा 'पूर्णिमा', नरेंद्र शर्मा 'नरेंद्र' ने किया ।
इस अवसर पर टीकाराम कन्या महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. मंजू शर्मा 'वनिता' ने अपना काव्य पाठ करते हुए कहा...
'वक़्त की तरह मुश्किल है मेरा लौट कर आना,
याद मुझे मत करना तुम याद मुझे मत आना'
आचार्य रूप किशोर गुप्ता ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'जिस थाली में खाते उसी में करें छेद
बेहया बेशर्म पूरे व्यक्त करें न खेद ।'
मुकेश उपाध्याय ने अपने काव्य पाठ में कहा..
'नहीं संजोये जाते कड़वी यादों के अवशेष
क्यों न पढ़ सके नयन समय का छोटा सा सन्देश ।'
तेजवीर सिंह त्यागी एडवोकेट ने अपना काव्य पाठ कुछ इस तरह से किया...
'सुख दुख में समता रहें, उपजें उच्च विचार
आपस में हो समर्पण, जीवन का है सार ।'
देव प्रशांत आर्य ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'आज माँ को गद्दारों ने घेरा है
देश में पाखण्ड का अँधेरा है ।'
कवि गोष्ठी की प्रायोजिका वर्षा वार्ष्णेय ने कहा..
'क्या से क्या आज की कहानी हो गयी,
हर तरफ चर्चा रेप की दुनिया दीवानी हो गयी ।'
आगमन में अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार शर्मा ने भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुए कहा...
'भ्रष्टाचारियों के हाथ भ्रष्टाचार में हैं डूबे,
उन्हीं के मुंह को लगा हुआ हराम है ।'
महानगर अलीगढ़ के ओज एवं व्यंग के कवि वेद प्रकाश 'मणि' ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'चरण जिधर भी हमें ले जाएंगे,
वही आचरण का पता बताएंगे ।'
अभिषेक माधव ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'श्रम, सादगी, शील,सत, सदाचार खान हो,
निज संस्कार की ही आप पहचान हो ।'
कवि श्रीयुत वार्ष्णेय ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'बता नहीं सकता मैं तुमको, किस दिन सैर कराएगी ।
छुक-छुक करती रेल, किसी दिन गांव हमारे आएगी ।'
इगलास से पधारे सन्यासी रमेशानंद हठयोगी ने अपना सार गर्भित काव्य पाठ करते हुए कहा...
'मानवता का आज नहीं होता निखार,
अब हर तरफ गुंडा गर्दियाँ फैली हैं ।'
महानगर के सुप्रसिद्ध कवि ने अपने व्यंगात्मक काव्य पाठ में कहा...
'हमने मंत्री जी से पूछा,
अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाइए,
वे, बोले, जानना है तो पेट्रोल पंप पर जाइये ।'
हाथरस के प्रसिद्ध कवि डॉ. ब्रजेश शास्त्री ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'आगमन में आपका जो आगमन हुआ,
मानो प्रेम का पदार्पण हुआ ।
कृतार्थ हम हुए, कृतार्थ आप भी,
काव्य कुंज का जो आज पल्लवन हुआ ।'
खैर से पधारे कवि भुवनेश कुमार 'चिंतन' ने अपने ओजस्वी काव्य पाठ में कहा...
'कब तक सोओगे, अब जागो नया सवेरा आएगा ।
केवल कोरी लफ्फाजी से, काम नहीं चल पाएगा ।।'
प्रकृति के कवि मनोज कुमार नागर ने जल-संरक्षण पर अपनी भाव-भीनी पंक्तियाँ इस प्रकार व्यक्त की...
'कर जल को बर्बाद निरर्थक, क्या बिन जल के मरने है ?
जल बिन जीवन नहीं सुरक्षित, अब जल संचित करना है ।'
इगलास के वयोवृद्ध कवि गाफिल स्वामी घुमक्कड़ ने अपना काव्य पाठ निम्न पंक्तियों से प्रारम्भ किया...
'गीत बेशक़ गुनगुनाओ वतन के
ख्वाब मत देखो किसी के दमन के ।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए नरेंद्र शर्मा 'नरेंद्र' ने अपने काव्य पाठ में कहा...
'आज होठों पे सवालों की बात मत लाओ,
ज़हन में गर्म ख्यालोंकी बात मत लाओ ।'
कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कवि अशोक 'अंजुम' ने कहा..
'यूँ निकला तस्वीर से, जिन्ना जी का जिन्न,
लोकतंत्र आहत हुआ, संविधान है खिन्न,
संविधान है खिन्न, व्यवस्था डगमग डोले,
नेता दागें रोज बयानों वाले गोले ।'
इसके अतिरिक्त कवि गोष्ठी में प्रवीण शर्मा 'दुष्यन्त', सुभाष तोमर,देव प्रशांत, निश्चल शर्मा आदि ने भी काव्य पाठ किया ।
इस अवसर पर ज्योति शर्मा, ओजस्वी शर्मा, दीपिका मिश्रा, वैद्य संत लाल, रामपाल सिंह, जितेंद्र मित्तल, डी. एस. राणा, ओ. पी. शर्मा, श्रीनिवास शर्मा, शीलेन्द्र शर्मा, अर्जुन देव, जसवंत सिंह, सहित सैकड़ों लोगों ने काव्य रसपान किया। अंत में आगमन अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया ।

इसके अतिरिक्त कवि गोष्ठी में वेद प्रकाश 'मणि', डॉ. ब्रजेश शास्त्री, भुवनेश चौहान, प्रवीण शर्मा 'दुष्यन्त', श्री ओम वार्ष्णेय, सुभाष तोमर, अभिषेक माधव, पाणी अलीगढ़ी, बाबा रमेशानंद, देव प्रशांत, निश्चल शर्मा आदि ने भी काव्य पाठ किया ।
इस अवसर पर ज्योति शर्मा, ओजस्वी शर्मा, दीपिका मिश्रा, रामपाल सिंह, जितेंद्र मित्तल, डी. एस. राणा, ओ. पी. शर्मा, श्रीनिवास शर्मा, शीलेन्द्र शर्मा, अर्जुन देव, जसवंत सिंह, सहित सैकड़ों लोगों ने काव्यरस पान किया । अंत में आगमन अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया ।