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Saturday 10 February 2018

                         17,अमर उजाला 


जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।
मेरी कविता amarujala.com par
Child marriage
बाल विवाह

बच्चियों की चहकती आवाज से घर आज भी आबाद था ।
सो रहा था सारा मोहल्ला पर वो घर अब भी गुलजार था ।
माँ के साये में पनप रही थी एक और जिंदगी ,
मुन्नी की आवाज से हर दिल को प्यार था ।
गरीबी ने दे दी थी दस्तक दबे पांव दरवाजे पर ,
मजबूरी से घर की अनजान थी मुन्नी ।
बन गयी थी मासूम आज किसी की बेगम ,किसी की सौगात थी ।
खुश थी पाकर कुछ नए गहने ,कुछ खिलौनों में व्यस्त थी ।
खरीदकर चला था आज वो मासूम को ,
मासूम मुन्नी आज भी झूठी खुशियों में मस्त थी ।
बेचकर बेटी की इज्जत कुछ सामान आया था,
कई दिनों बाद आज सबने खाना खाया था ।
त्रस्त थी माँ कहीं किसी अनजानी आशंका से,
ये कैसा वक़्त उसकी जिंदगी में आया था ।
खेलते खेलते हंसी की आवाज चीख में बदल गयी ,
नन्ही सी मुन्नी आज किसी की जरूरत बन गयी ।
अधेड़ उम्र ,पके से बाल ,चेहरे पर गड्ढों का भास था ,
शायद यही थी मुन्नी की किस्मत ,उसका नसीब था ।
(कब बदलेंगी अनगिनत मुन्नियों की किस्मत ,
कब समाज बदलेगा ।
कब तक डसेंगी कुछ बेजान प्रथाएं ,
कब तक न्याय को मिलेंगी चुनौतियां ।)
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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