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Saturday 10 February 2018

                                    २३,कवितायेँ 


शुभ प्रभात जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।मेरी रचनाएँ सौरभ दर्शन पाक्षिक पत्र (राजस्थान में )धन्यवाद संपादक मंडल ।


ऋतु बसंत की 
चटक मटक कर गागरिया में नीर भरन को आई वो ,
यूँ सकुचाती ,यूँ लजाती ,अंखियन में लाज भर लाई वो ।

मदमाती ,मतवाली सी चंचल चपल अनौखी छवि की वो ,
अपलक ,रूहानी मुस्कान से खुद को सजा लाई वो।

चंचल चितवन ,नैन घनेरे ,पलकों में सपने भर लाई वो ,
मधुमालती ,गुलाब ,कनेर जैसे आँचल में भर लाई वो ।

एक किरण है ,एक है आशा ,दूजी मुस्कान है मंजिल उसकी ।
अवतार है जैसे रंभा का ,दीप प्रज्वलित कर
लाई वो ।

अगणित ,अंकुर ,अणिमा जैसी प्रीत छलकती मुखमंडल पर ,
वो है मेरी शारदे माँ ,संग अपने एक अजूबा ले आई वो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़



                                             

"धन्यवाद सौरभ दर्शन ,

उफनते हुए दूध को देखकर जैसे
 विचार भी उबलते लगते हैं ।
डाल देती हूं थोड़ी सी मुस्कान भी
चीनी की तरह जज्बात पिघलने लगते हैं
सोचती हूँ थोड़ा सा हिलाकर तो देखूं बर्तन को ,
कहीं मुस्कराहट वहीं तो नही रह गयी ।
चीनी की मिठास कम हो तो चल जाती है जिंदगी में मिठास कम हो तो अहसास मरने लगते हैं ।
गैस पर रख कर दूध को जाने कहाँ सोच में डूबने लगी ,
मंजिलों को पाने की ख्वाइश जैसे गैस की लौ लगने लगी।
जरा सा तिनका क्या गिरा आंख में,
वो देखो दूध भी बाहर चमकने लगा ,
मंजिल भूलकर जिंदगी देखो,
फिर से रोज की कहानी कहने लगी ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़"
धन्यवाद सौरभ दर्शन ,

उफनते हुए दूध को देखकर जैसे
विचार भी उबलते लगते हैं ।
डाल देती हूं थोड़ी सी मुस्कान भी
चीनी की तरह जज्बात पिघलने लगते हैं
सोचती हूँ थोड़ा सा हिलाकर तो देखूं बर्तन को ,
कहीं मुस्कराहट वहीं तो नही रह गयी ।
चीनी की मिठास कम हो तो चल जाती है जिंदगी में मिठास कम हो तो अहसास मरने लगते हैं ।
गैस पर रख कर दूध को जाने कहाँ सोच में डूबने लगी ,
मंजिलों को पाने की ख्वाइश जैसे गैस की लौ लगने लगी।
जरा सा तिनका क्या गिरा आंख में,
वो देखो दूध भी बाहर चमकने लगा ,
मंजिल भूलकर जिंदगी देखो,
फिर से रोज की कहानी कहने लगी ।

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