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Wednesday 28 March 2018

                                ५३ ,भूख 

भूख गरीबी और बेगारी 
कहाँ गयी मानवता भारी ।
आंखें खोलो बांट भी दो अब 
गरीबों की वो छोटी सी थाली।
खुद को कहते दानी भारी ,
कहाँ गए वो देश के पुजारी ।
महलों के वो वासी अनाड़ी ,
अनजान है क्यों दुखों से इनके ,
राशन खाता और बीमारी ,
कहाँ गयी वो मदद हमारी

                                ५२ ,इन्तजार 

https://hindi.sahityapedia.com/?p=95815
कहाँ हो तुम आओ न
मैं रो रही हूँ मुझे चुप कराओ न
क्यों बसे हो मेरी धड़कन में
आकर राज बताओ न
मैं हो गयी हूँ खुद से ही फना
मुझे आकर खुद से मिलाओ न
रिसते हो क्यों इन आंसुओं की तरह
दिल में कुछ इसका अहसास दिलाओ न
बहुत याद आते हो तुम
आँखों को बहुत रुलाते हो तुम
तुम्हे हम याद हो न हो
पर इस दिल को क्यों इतना सताते हो तुम
जान कर भी क्यों अनजान हो
बस एक बार तो आकर बताओ न

                                      ५१,तहजीब 

तहजीब इश्क़ की बयां
कैसे करते ,
बदनाम न हो जाये वो
आज भी ख्याल है 
बस उसका ।

                              ५०,पाबंद  नारी 

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।कनाडा से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के मार्च अंक से साभार ।
आजादी के बाद भी नारी अस्मिता एक बहुत बड़ा सवाल है ।पुरुष प्रधान समाज में नारी होना आज भी एक गुनाह है ।

जीवन है ये जीवन है ये कैसा कारवाँ ,
जीते रहे हम हमेशा खुद का दिल दुखा ।
कैसी हैं ये मजबूरियां कैसी हैं ये रूढ़ियाँ, 
हर तरफ सजी हैं जैसे मौत की खामोशियाँ ।

माँ भी रोती यहाँ, बेटी से भी दूरियां ,
बेटे की चाह में बेटी को करते कत्ल यहां।
 क्यों है हर मोड़ पर नारी को पाबंदियां ,
घूरती नजरों से बढ़ती जीने की दुश्वारियां

नारी बिन पुरुष है अधूरा पुरुष के बिन नारी जहां ,
किसने सिखाया समाज को दोगलापन यहां ।
सच को हमेशा नकारता रहा झूठ के
बहकाबे में ,
जिंदगी की गाड़ी नहीं चलती दोनों पहियों के बिना ।

शिव और शक्ति भी हैं एक दूसरे के पूरक जहां ,
किसने सिखाई समाज को विद्रूपता यहां।
एक बार हटाकर तो देखो शिव से इ की मात्रा ,
नजर आएगा आंखों को सिर्फ शव ही यहां,
नजर आएगा ये संसार सिर्फ एक घोर श्मशान यहां ।




                                 ४९.कविता 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,जय विजय पत्रिका लखनऊ के फरवरी अंक से आभार ।


                                                ४८,

जहां बदले की भावना का विस्तार होने लगे वहां निस्वार्थ प्रेम कैसे रह सकता है ?

                              ४७,तुम क्या जानो 

जनपद अमरोहा से प्रकाशित असीम नारी शक्ति में ,आभार ।

                                    ४६,कविता 


दिन बैचैन रात भी दीवानी है ।
मैं हूँ अक्षर तुम मेरी कहानी हो।
सात सुरों जैसा संगम अपना ,
मैं हूँ वीणा तुम मेरी रागिनी हो ।

पुलकित हो झूम जाती हूँ ,
अक्स तेरा चहुँ ओर पाती हूँ ।
मैं हूँ कागज तुम मेरी पाती हो ,
तुम से ही तो जीवन पाती हूँ ।

अधरों पर हैं गीत मिलन के ,
दिल में तन्हाई रहती है ।
मैं हूँ जीवन तुम धड़कन हो ,
मनमीत तुम्हें ही पाती हूँ ।

उर में बसाई है छवि तेरी ,
छंद में ज्यूँ लय रहती है ।
मैं हूँ खुशबू उपवन की ,
तुम में ही तो खो जाती हूँ।

जीवन है एक जिम्मेदारी ,
सार है जीवन का दुनियादारी ।
उम्मीदों के रेतीले पनघट पर ,
राह तुम्हारी ही तकती हूं ।

आसमान जैसे ख्वाब सजाये ,
मैं हूँ चपला तुम यामिनी हो ।
साथ तुम्हारा दिल का संबल ,
मैं हूँ शब्द तुम मेरी शायरी हो |

                                             ४५,श्रधांजलि 

श्रद्धांजलि ............
सोचती हूँ कुछ कविता लिखूँ तुम पर 
कुछ गीत भी लिखने को दिल करता है 
शब्द नहीं मिल रहे चलो आज चंद
अहसास ही लिख देती हूं अपने अन्दाज में !
क्यों रुलाते हो तुम मुझे रोज कुछ इस तरह ,
जानते हो न कि मैं तुमसे नाराज नहीं रह सकती!
सुकून हो तुम मेरे दिल का जानकर भी क्यों अनजान रहते हो ,
क्या सबूत देना जरूरी होता है हर बार इश्क़ में ।
नहीं रहा जाता तुम्हारी इस बेरुखी के साथ
सदियों से दबा रही हूँ अपने जज्बात,
सिर्फ एक प्यार की अभिलाषा में ।
क्या प्यार की भाषा से तुम वाकिफ नहीं हो ,
या जानकर भी अनजान रहने की आदत है ।
चलो छोड़ो क्या समझोगे तुम उन जज्बातों को ,
जो दर्द के गहन साये में आराम देते हैं!
भुला देते हैं मेरे उस दर्द को जो
जिस्म पाने की ख्वाइशों में
 एक और दर्द को जन्म दे गया ।
वो एक सच्ची जिंदगी जीने की कशिश ,
न दे पाई जो सुकून कभी उस ममता को ।
पुकारती रही उस अनजान साये को दर्द से लबरेज होकर हर पल हर घड़ी हर वक़्त ।
क्या मिला लेकिन उस रूह को
 जो पाक थी ,निश्छल थी,
सिर्फ एक तमन्ना लिए अपने दिल में ।
छोड़ गई अपने पीछे अपने अंश को रोने के लिए ,
पिया मिलन कि अनौखी आस संजोये मन में ।
याद है आज भी वो आंसुओं से 
तर बतर उस रूह का चेहरा !
खामोशी ओढ़े हुए खुली आँखों से देखे थे ,
जिसने कभी पिया के साथ रहने के सपने।
बीत गयी वो रात भी पुकारते हुए तुम को ,
लेकिन तुम्हें न आना था ,न तुम आये कभी !
तुम्हें भी तो सिर्फ प्यार की ही तलाश थी ,
या चाहत थी सिर्फ जिस्म को सराहने की ।
क्या होना था क्या हो गया ,
आत्मा को लूटकर परमात्मा से मिलन ही सत्य है !
समझदार तो तुम पहले ही बहुत थे ,
शायद अब जीतना भी आ गया था दिलों को ।
क्योंकि इस विशाल समन्दर के रहने वाले
 एक मगरमच्छ हो तुम ।
प्यार की बातों से बहलाकर नारी को जीतना सीखा है ।
सच्च कहूँ तो आज भी तुम आजाद हो ,
प्यार की अद्भुत भाषा गढ़ने में सक्षम हो तुम ।
आदिकाल से चली आ रही प्रथाओं की एक 
महफ़िल हो तुम ।
हाँ तुम पुरुष ही तो हो जिसने सीखा है
औरत को तोड़ना ,मजबूरियों की आड़ लेकर ।
कोमल तो नहीं आज भी 
सिर्फ प्यार की उम्मीद में हारी है ।
तुम पुरुष हो आदि काल से 
अपने ही चिंतन में खोए हुए ।
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है तुम्हारे लिए 
जीना और सिर्फ जीना प्यार की आशा में......…...
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

Monday 12 March 2018

                                     ४४,जूरी अवार्ड 





जय श्री कृष्णा मित्रो , 10 /3/18 को दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ओडिटोरियम में "आगमन साहित्यिक और सांस्कृतिक समूह" द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया गया,जिसमें आपकी मित्र को भी (स्पेशल जूरी अवार्ड )से सम्मानित किया गया ।देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं का विशेष सम्मान किया गया ।दिल को मोहने वाले और समाज को द्रवित कर देने वाले कार्यक्रम का अनोखा संगम देखने को मिला ।हर व्यक्ति को अपना दुख बड़ा दिखाई देता है ,लेकिन जब सामाजिक संस्थाएं उन लोगों को भी सामने लाती हैं जिनका दुख अवर्णनीय होता है तब ऊपरवाले का शुक्रगुजार किये बिना नहीं रहा जाता ।दिल को झकझोरने वाले सुंदर और प्रेरणादायक आयोजन के लिए आदरणीय पवन जैन सर और आगमन परिवार का तहेदिल से शुक्रिया ।

Thursday 8 March 2018

                         ४३, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 


                                       ४२ ,ज्ञान गंगा 




जय श्री कृष्णा मित्रो ,कल 6/3/18 को ज्ञान गंगा पत्रिका का वार्षिक उत्सव और होली मिलन समारोह अलीगढ़ के उषा गार्डन में आयोजित किया गया।समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम और काव्य पाठ भी हुआ ।आदरणीय श्री मंगलसैन वार्ष्णेय जी की अध्यक्षता में श्री भूपेंद्र जैन प्रशासनिक अधिकारी अमर उजाला अलीगढ़ ने दीप प्रज्ज्वलन किया ।आपकी मित्र ने काव्यपाठ किया और श्री अनिलराज गुप्ता संपादक "ज्ञान गंगा" द्वारा सम्मानित भी हुई ।ज्ञान गंगा का कारवां यूँ ही चलता रहे और हम सभी को ज्ञान देता रहे ।बहुत बहुत धन्यवाद ज्ञान गंगा ।

                                      ४१.दर्द 

जाने क्यों लगता है 
जैसे दामन मेरा झटक गया ,
वो आया था झोंका बहार का
क्यों घायल मुझको कर गया ।
वो पतझड़ की राहें कभी 
अजीज थीं मेरी ,
दिखाकर सावन का ख्वाब 
क्यों सपना मेरा टूट गया ।
बलखाती फिरती थी
बादल को छूने की चाह में ,
उड़ती हुई हवा ने क्यों
दूर मुझे छिटक दिया ।
प्रीतम हो या हो सपना
कोई अधूरा सा ,
ओ बिछुड़े हुए पल क्यों
साहस मेरा तोड़ दिया ।

                                       ४०,होली 

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।सौरभ दर्शन भीलवाड़ा राजस्थान से होली के साथ ।२५/२/१८ 

                                ३९,आगमन 




होली के रंग, कवियों के संग" २७/२/१८

माँ सरस्वती की असीम कृपा से "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " के तत्वावधान में अंगूर वाली कोठी , रिसाल सिंह नगर , अलीगढ़ के प्रांगण में रंगा-रंग काव्य-समारोह "होली के रंग , कवियों के संग" आयोजित हुआ । मुख्य अतिथि कर्नल श्री आर के सिंह रहे। कार्यक्रम का संचालन कवि श्री रामप्रकाश पाल "पथिक" (कासगंज) ने किया । संस्था के अध्यक्ष डॉ. दिनेश कुमार शर्मा एवं सचिव श्रीमती वर्षा वार्ष्णेय ने अतिथि एवं कवियों का सम्मान किया । सर्वश्री नरेंद्र शर्मा नरेंद्र ,डॉ दिनेश शर्मा ,श्रीओ३म वार्ष्णेय , आचार्य रूपकिशोर गुप्ता , सुभाषसिंह तोमर , भुवनेश चौहान "चिंतन" (खैर) , श्रीमती पूनम शर्मा "पूर्णिमा" ,वर्षा वार्ष्णेय , तेजवीर सिंह त्यागी एड0 , घुमक्कड़ कवि गाफिल स्वामी , पाड़ी अलीगढ़ी , डॉ. दौलतराम , सुधांशु गोस्वामी , श्यामसुंदर "नौजवाँ" आदि कवि/कवयित्रियों ने सभी विधाओं की रचनाओं के साथ विशेष रूप से होली-गीत प्रस्तुत किये जिनकी श्रोताओं ने जोशपूर्ण उत्साह के साथ सराहना की ।